
‘अवालांच’ की आवाज के साथ ही स्केटिंग के सभी खिलाडिय़ों ने पूरी शक्ति से अपने आपको ढकेल कर पहाड़ी ढलान के सुपुर्द कर दिया, ताकि वे अपने प्राण बचा सकें। गोपाल और उसके दो साथी महेश और रमेश ‘अवालांच’ की परिधि में थे। अकस्मात एक भयानक धमका हुआ। वातावरण में सफेद बर्फ के टुकड़े बिखर गए, जैसे किसी ने बर्फ की चट्टन को बारूद से उड़ा दिया हो। धमाके के साथ ही बर्फ की बड़ी चट्ïन, जो एक बस्ती को कब्रिस्तान बनाने के लिए पर्याप्त थी, गिर पड़ी और स्केटिंग के तीन खिलाडिय़ों को अपने भीतर समेट लिया। सारी घाटी में शोक की लहर दौड़ गई।
अवालांच बाद घाटी का नक्शे ही बदल चुका था। जहां थोड़ी देर पहले लोग मौसम का आनंद उठाने के लिए जमा थे वहां अब बर्फ का पहाड़ अपनी तबाहियों की कहानी सुना रहा था। अवालांच के बाद ही विभिन्न इलाकों से टेलीफोन आने लगे। उनमें स्केटिंग करने वालों के नाम पूछे जा रहे थे।

गोपाल को जब उसे होश आया तो वह ठंडी बर्फ में दफन था। उसे विश्वास हो चला था कि वह कुछ ही क्षणों में मर जाएगा। गोपाल ने बर्फ से बाहर निकलने का प्रयत्न किया, पर उसके चारों ओर बर्फ की सख्त दीवार बाधक थी। गोपाल ने अपने मुख को कठोरता से बंद रखा, ताकि बर्फ मुख में न घुसे और सांस लेने का र ास्ता बंद न हो जाए। उसने अपने दोनों हाथ सीने से लगाए रखे, ताकि सर्दी का प्रभाव उसके दिल और फेफड़ों पर न हो। गोपाल ने अपने पैर हिलाने की चेष्ट। की। उसके दाएं पैर में चोट आने के कारण सख्त पीड़ा हो रही थी। गोपाल ने मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद किया कि पैरों की बढ़ी हुई पीड़ा के कारण वह सो नहीं सकेगा। उसकी आंखें खुली रहने के बावजूद किसी चीज को देख नहीं सकती थीं। समय की लंबी घडिय़ां बीत जाने के बाद सहसा उसके कानों में विमान की गडग़ड़ाहट सुनाई दी। उसके शरीर में शक्ति आ गई। वह अपने को हिलाने का प्रयत्न करने लगा। उसके शरीर की तपिश के कारण उसके चारों ओर की बर्फ कुछ नरम पड़ चुकी थी। वह ऊपर बढऩे का प्रयत्न करने लगा और अपने हाथ को ऊंचा करके अपनी उंगलियों से बर्फ को कुरेदने लगा। लम्बे संघर्ष के बाद जब वह निराश हो गया, तो अपने आप को दोबारा उस अंधे कुएं में गिराकर खत्म करने की सोचने लगा। अकस्मात उसका हाथ ऊपर की ओर गया, तो नरम-नरम बर्फ टूट कर उसके सिर पर गिरने लगी और सुराख से नीला-नीला आकाश नज र आने लगा।
वह खुशी से पागल हुआ जा रहा था। उसमें दोबारा दा रहने की इच्छा पैदा हुई। वह वैसे ही रुका रहा, ताकि किसी गुरने वाले से मदद मिल सके। सहायता-दल के आदमी लापता आदमियों की लाशें ढूंढ़ते-ढूंढ़ते लगभग निराश हो चले थे।
कुछ देर बाद ही सहसा किसी के चलने की आवाज आई। गोपाल अपनी उंगली बाहर निकाल कर इशारे करने लगा। वह पीड़ा से चिल्लाने लगा और र-र से मदद के लिए चीखने-चिल्लाने लगा। अब सुराख खोदा गया, तो वह आदमी चीखा, ‘अरे गोपाल! तुम जीवित हो।’ गोपाल को तुरन्त उस गड्ढे में से निकाला गया और चिकित्सा सहायता पहुंचाई गई। गोपाल ने क्षीण आवाज में अपने साथियों के बारे मे विचार प्रकट किया कि आसपास ही वे मौत से लड़ रहे होंगे। सहायता दल के कई व्यक्तियों ने गोपाल के बताने पर खुदाई की। खुदाई से उसके दोनों साथी बरामद तो हुए, पर वे मर चुके थे। गोपाल अस्पताल ले जाते समय बेहोश हो चुका था।
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